ASHTAVAKRA GITA

ASHTAVAKRA GITA


क्व प्रारब्धानि कर्माणि जीवन्मुक्तिरपि क्व वा।

क्व तद्विदेहकैवल्यं निर्विशेषस्य सर्वदा।।20.4।।