AVADHUTA GITA

AVADHUTA GITA


निर्भिन्नभिन्नरहितं परमार्थतत्त्व

मन्तर्बहिर्न हि कथं परमार्थतत्त्वम्।

प्राक्सम्भवं न च रतं नहि वस्तु किञ्चित्

ज्ञानामृतं समरसं गगनोपमोऽहम्।।18।।

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