SRIRAM GITA

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एवं सदा जातपरात्मभावनः

स्वानन्दतुष्टः परिविस्मृताखिलः।

आस्ते स नित्यात्मसुखप्रकाशकः

साक्षाद्विमुक्तोऽचलवारिसिन्धुवत्।।52।।

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