SRUTI GITA

SRUTI GITA


संसारचक्रक्रकचैर्विदीर्ण

मुदीर्णनानाभवतापतप्तम्।

कथंचिदापन्नमिह प्रपन्नं

त्वमुद्धर श्रीनृहरे नृलोकम्।।20।।