श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।

सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्।।11.11।।

 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।11.11।। दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुये और दिव्य गन्ध का लेपन किये हुये एवं समस्त प्रकार के आश्चर्यों से युक्त अनन्त, विश्वतोमुख (विराट् स्वरूप) परम देव (को अर्जुन ने देखा)।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।11.11।। --,दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यानि माल्यानि पुष्पाणि अम्बराणि वस्त्राणि ध्रियन्ते येन ईश्वरेण तं दिव्यमाल्याम्बरधरम्? दिव्यगन्धानुलेपनं दिव्यं गन्धानुलेपनं यस्य तं दिव्यगन्धानुलेपनम्? सर्वाश्चर्यमयं सर्वाश्चर्यप्रायं देवम् अनन्तं न अस्य अन्तः अस्ति इति अनन्तः तम्? विश्वतोमुखं सर्वतोमुखं सर्वभूतात्मभूतत्वात्? तं दर्शयामास। अर्जुनः ददर्श इति वा अध्याह्रियते।।या पुनर्भगवतः विश्वरूपस्य भाः? तस्या उपमा उच्यते --,

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।11.11।। जब कोई चित्रकार अपने कलात्मक विचार को रंगों के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयत्न करता है? तो वह प्रारम्भ में एक पट्ट पर अपने विषयवस्तु की अस्पष्ट रूपरेखा खींचता है। तत्पश्चात्? एकएक इंच में वह रंगों को भर कर चित्र को और अधिक स्पष्ट करता जाता है। अन्त में वह चित्र उस चित्रकार के सन्देश का गीत गाते हुये प्रतीत होता है। इसी प्रकार? साहित्य के कुशल चित्रकार व्यासजी के द्वारा चित्रित इस शब्दचित्र का यह श्लोक संजय के शब्दों में भगवान् के विश्वरूप की रूपरेखा खींचता है।संजय के समक्ष जो दृश्य प्रस्तुत हुआ है? वह सामान्य बुद्धि के पुरुष के द्वारा सरलता से ग्रहण करने योग्य कदापि नहीं कहा जा सकता। इस वैभवपूर्ण एवं शक्तिशाली दृश्य को देखकर सामान्य पुरुष तो भय और विस्मय से भौचक्का ही रह जायेगा। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कोई मन के द्वारा कल्पना किया जाने योग्य विषय नहीं है और न ही बुद्धि उसको ग्रहण कर सकती है। इसलिए? जब गीतोपदेश के मध्य यह दृश्य उपस्थित हो जाता है? तब संजय भी वर्णन करते हुए कुछ हकलाने लगता है।दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुए? दिव्य गन्ध का लेपन किये हुए? सर्वाश्चर्यमय? विश्वतोमुख भगवान् इत्यादि शब्द चित्रकार के उन वक्र चिह्नों के प्रतीक हैं जिनके लगाने पर विराट् रूप का चित्र उसकी रूपरेखा में पूर्ण होता है।संजय आगे वर्णन करता है

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta

।।11.11।।No commentary.

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

11.11 Sri Abhinavagupta did not comment upon this sloka.

English Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

11.11 Divya-malya-ambara-dharam, wearing heavenly garlands and apparel-the God wearing celestial flowers and clothings; divya-gandha-anulepanam, anointed with heavenly scents; sarva-ascaryamayam, abounding in all kinds of wonder; devam, resplendent; anantam, infinite, boundless; and visvato-mukham, with faces everywhere-He being the Self of all beings. 'He showed (to Arjuna)', or 'Arjuna saw', is to be supplied. An illustration is once more being given of the effulgence of the Cosmic form of the Lord:

English Translation By Swami Gambirananda

11.11 Wearing heavenly garlands and apparel, anointed with heavenly scents, abounding in all kinds of wonder, resplendent, infinite, and with faces everywhere.