श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

सञ्जय उवाच

एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः।

दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम्।।11.9।।

 

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।11.9।। संजय ने कहा -- हे राजन् ! महायोगेश्वर हरि ने इस प्रकार कहकर फिर अर्जुन के लिए परम ऐश्वर्ययुक्त रूप को दर्शाया।।
 

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।11.9।। --,एवं यथोक्तप्रकारेण उक्त्वा ततः अनन्तरं राजन् धृतराष्ट्र? महायोगेश्वरः महांश्च असौ योगेश्वरश्च हरिः नारायणः दर्शयामास दर्शितवान् पार्थाय पृथासुताय परमं रूपं विश्वरूपम् ऐश्वरम्।।

Hindi Commentary By Swami Chinmayananda

।।11.9।। बहुमुखी प्रतिभा के धनी महर्षि व्यासजी ने साहित्य के जिस किसी पक्ष को स्पर्श किया उसे पूर्णत्व के सर्वोत्कृष्ट शिखर तक उठाये बिना नहीं छोड़ा। व्यासजी की प्रतिभा का वर्णन कौन कर सकता है उनमें अतुलनीय काव्य रचना की कल्पनातीत क्षमता? अनुपम गध शैली? विशुद्ध वर्णन? कलात्मक साहित्यिक रचना? आकृति और विचार दोनों में ही मौलिक नव निर्माण की सार्मथ्य? ये सब गुण पूर्ण मात्रा में थे। तेजस्वी दार्शनिक? पूर्ण ज्ञानी और व्यावहारिक ज्ञान में कुशल व्यासजी कभी राजभवनों में तो कभी युद्धभूमि में दिखाई देते? कभी बद्रीनाथ में तो कभी पुन शान्त एकान्त हिमशिखरों का मार्ग तय करते विशाल मूर्ति महर्षि व्यास? हिन्दू परम्परा और आर्य संस्कृति में जो कुछ सर्वश्रेष्ठ है? उस सबके साक्षात् मूर्तरूप थे। ऐसा सर्वगुण सम्पन्न प्रतिभाशाली पुरुष विश्व के इतिहास में कभी किसी अन्य काल में नहीं जन्मा होगा? जिसने अपने जीवन काल में व्यासजी के समान इतनी अधिक उपलब्धियां प्राप्त की हों।भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को संकेत किया कि विश्वरूप में वह क्या देखने की अपेक्षा रख सकता है तथा विराट् स्वरूप का यह दर्शन उसे कहां होगा। अब? व्यासजी एक अत्यन्त अल्प से प्रकरण का उल्लेख करते हैं? जिसमें संजय? दुष्ट कौरवों के अन्ध पिता धृतराष्ट्र के लिए युद्धभूमि के वृतान्त का वर्णन करता है।साहित्य की दृष्टि से इस श्लोक का प्रयोजन केवल यह बताना है कि श्रीकृष्ण ने अपने दिये हुए वचनों के अनुसार? वास्तव में? अर्जुन को अपना विश्वरूप दर्शाया। परन्तु इसके साथ ही? महाभारत के कुशल रचयिता व्यासजी? हमारे लिए? संजय के मन के भावों को तथा पाण्डवों के प्रति उसकी सहानुभूति का चित्रण भी करना चाहते हैं। हम पहले ही कह चुके हैं कि संजय हमारा विशेष संवाददाता है। स्पष्ट है कि उसकी सहानुभूति भगवान् के मित्र पांडवों के साथ है। उसकी यह प्रवृत्ति निसंशय रूप से यहाँ स्पष्ट झलकती है? जब वह धृतराष्ट्र को केवल राजन् शब्द से संबोधित करता है जब कि श्रीकृष्ण को महायोगेश्वर तथा हरि के नाम से। हरण करने वाला हरि कहलाता है?अर्थात् जो मिथ्या का नाश करके सत्य की स्थापना करने वाला है।संजय के इन शब्दों के साथ श्रोतृसमुदाय तथा गीता के अध्येतृ वर्ग का ध्यान युद्ध की भूमि से हटाकर राजप्रासाद की ओर आकर्षित किया जाता है। पाठकों को यह स्मरण कराने के लिए कि गीता के तत्त्वज्ञान का व्यावहारिक जीनव से घनिष्ठ संबंध है तथा उसकी जीवन में उपयोगिता भी है? सम्भवत ऐसे दृश्य परिवर्तन की आवश्यकता है। संजय धृतराष्ट्र को सूचना देता है कि महायोगेश्वर हरि ने अर्जुन को अपना ईश्वरीय रूप दिखाया। संजय के मन में अभी भी कहीं क्षीण आशा है कि यह सुनकर कि विश्वविधाता भगवान् श्रीकृष्ण पाण्डवों के साथ हैं? सम्भवत अन्धराजा अपने पुत्रों की भावी पराजय को देखें? और विवेक से काम लेकर? विनाशकारी युद्ध को रोक दें।अगले श्लोकों में संजय विश्वरूप में दर्शनीय वस्तुओं का वर्णन करने का प्रयत्न करता है

Sanskrit Commentary By Sri Abhinavgupta

।।11.9।।No commentary.

English Translation of Abhinavgupta's Sanskrit Commentary By Dr. S. Sankaranarayan

11.9 Sri Abhinavagupta did not comment upon this sloka.

English Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Swami Gambirananda

11.9 Rajan, O King, Dhrtarastra; uktva, having spoken evam, thus, in the manner stated above; tatah, thereafter; harih, Hari, Narayana; maha-yogeswarah, the great Master of Yoga-who is great (mahan) and also the master (isvara) of Yoga; darasyamasa showed; parthaya, to the son of Prtha; the paramam, supreme; aisvaram, divine; rupam, form, the Cosmic form:

English Translation By Swami Gambirananda

11.9 Sanjaya said O King, having spoken thus, thereafter, Hari [Hari: destroyer of ignorance along with its conseences.] (Krsna) the great Master of Yoga, showed to the son of Prtha the supreme divine form: